Wednesday, February 10, 2010

Ever lasting wait - इंतज़ार


 This shayari is written to express the rage and situation of a boy waiting for girl in park, a man waiting for wife on his bike, a friend waiting for girl friend at theatre, or a (would be) fiance waiting for a simple yes...


"आती हूँ" "आती हूँ" बोल कर बार बार,
क्यों लड़कियां कराती है हमको इंतज़ार,

कभी है कपड़ों कि उलट-फेर, कभी सोलह-श्रृंगार,
कहाँ से ढून्ढ लाती है लड़कियां, देरी के बहाने हज़ार,


फिल्म छूटी, ट्रेन छूटी, जिंदगी दी हमने गुज़ार,
किसी कीमत पर लेकिन खत्म ना हुआ ये इंतज़ार,

सेकंड ना देखे, मिनट ना देखे, घंटों की भी क्या दरकार,
घर के परदे छांटने में ही, बदल जाती है सरकार,


जिंदगी लगा दी करने में, इक छोटा सा इज़हार,
एक मिलन की आस में, मुरझा गया ये गुल-ओ-गुलज़ार,


खुदा करे रंग लाये, मेरा ये बेसब्र इंतज़ार,
यह लम्हा भले ही गुज़र जाये, पर ख़त्म ना हो उनका प्यार ||

Friday, November 13, 2009

Kavita...

What a Kavita (Poem) means, what a kavita is; I tried to capture in my kavita here:


अक्षर मिल कर शब्द बना, शब्द मिल मिल पंक्ति,
जो मिली पंक्ति कई, बनी इक सुन्दर कविता |



कोई लम्बी, कोई छोटी, कोई हल्की, कोई मोटी,
हर रंग-रूप, हर आकर-प्रकार में मिलती कविता |


कभी हँसाती, कभी रुलाती, कभी यादों में बहा ले जाती,
हर हाव-भाव को आसानी से कहती जाती है कविता |



गंगा, जमना, गोदावरी की तरह,
हर भाषा का संगम कराती ये कविता |


कभी सच्ची है, कभी झूठी है,
कभी हवा में महल बनाती कविता |



कभी सताती, कभी मनाती,
नखरे कर कर इठलाती कविता |



तेरी सुनाती, मेरी सुनाती,
सबकी कहानी बतलाती कविता |



इन कविताओं को पढ़-पढ़ किसी लम्हा,
तुम याद करोगे कि कोई वो कवि-था || 


--- लम्हा (Lamha)

This is dedicated to the friend named Kavita who wrote a poem for me, check my last entry. The last part is the dedication from the south-indian style of writing the name, with 'h':
KavitHa :-)

Wednesday, November 11, 2009

वीर रस की कविता

This is my first poem on bravery which i have written for one of my colleague preparing for CFA:

इरादे तो तुम करते हो बड़े बड़े,
देखना है तूफान में कितने पेड़ रहते है खड़े 


दुआ है टकरा जा सारी बाधाओं से तू,
तोड़ सारे पत्थर बन नदी आगे बढे 


अगर हो दम किसी में तो,
तान के सीना हम से भिडे

मिला देंगे मिटटी में उसे,
जो सामने आने की गलती करे ||



I have also written a small sher:

वोह आंधी की तरह आये और तूफ़ान की तरह चले गए
हमारे चैनो-आरम को निश्तो-नाबूद कर गए
हम इतने नासमझ ठहरे और भुला दिया
कि हवा को कौन पकड़ पाया है भला |

--- लम्हा (Lamha)

Thursday, October 29, 2009

My motivation for the shayaris

What is the motivation of my shayaris??
i can answer this way:


रोशनी देना केवल सूरज का काम नहीं,
कभी-कभी दिए भी रस्ते दिखा दिया करते है |


--- लम्हा (Lamha)

first ghazal

After some improvement and lots of thinking i am writing my first ghazal or can say continuous shayari. I hope this makes sense to every reader:


मेरा दिल लिए जा रहे हो, बोलो संभाल पाओगे,
जिस दिन मेरी सांस टूटी, उस दिन तो मिलने आओगे |


ऐसे न रोंदो वोह दिल है दिल, ज़माना भी दुहाई देगा
क़यामत के दिन ये दिल ही तेरे लिए गवाही देगा |


जितनी भी तुम कोशिश कर लो, हमें नहीं भुला पाओगे,
जब भी ढूंढोगे तो दिल ही नहीं, हमें भी अपने पास पाओगे |


दुनिया की हर ख़ुशी मिले, यह दुआ दूँगा,
एक अश्क भी गिरा तेरा तो रब से भी बैर लूँगा |


तुम साथ न हो हर लम्हा यही एक गम होगा,
हम दुआ करेंगे यह जमाना तुम पर न इस तरह बेरहम होगा ||


--- लम्हा (Lamha)

Tuesday, October 27, 2009

Dedicated to friends

These are a few which i wrote because of people's initial commnets/feedback:


शायर तो हम हमेशा से थे,
पर इस दुनियादारी की भाग-दौड़ में हम खुद को ही भुला बैठे |




हमें न निकालो उनके ख्यालों से बाहर,
कुछ तो रहने दो जीने के लिए, हमारी सांस तो कब की बंद है |


this one is dedicated to my batch-mates cum colleagues, my good friends:


तुम्हारा साथ था तो हस्ते हुए ऊंचाईयां छूते चले गए,
जब से तुम गए तब से ये रस्ते भी बेगाने लगते है |


--- लम्हा (Lamha)

Sunday, October 25, 2009

My first notations of shayari

After watching the old tv serial on Mirza Ghalib the shayar in me has awaken who used to make small shayaris from all the small moments of life. Today i wrote three small shayaris and wish to know your comments to improve further:



सालों इंतज़ार के बाद उनका एक पैगाम आया...
समझ नहीं आता, पैगाम देख कर खुश हो या तारीख देख कर |


 
हम तो तन्हा ही आये थे और तन्हा ही चले जायेंगे,
अए ज़माने, तू उनको बेवफा न कहना |




अगर कोई हमसफ़र मिल जाये तो मीलों चले जाएँ...
अकेले में तो राह का हर पेड़ मील का पत्थर लगता है |


--- लम्हा (Lamha)